पपीता की खेती कर किसान कम समय में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। पपीता का पौधा लगाने के एक से डेढ़ वर्ष बाद फल देने लगते हैं। कम समय, कम स्थान व कम लागत में ज्यादा पैदावार व अधिक मुनाफा देने होने के कारण पपीते की खेती किसानों में लोकप्रिय होती जा रही है। उचित जल निकास वाली दोमट व बलुई दोमट भूमि पपीते के लिए अच्छी रहती है। पपीते के लिए शुष्क व पाला व सेम रहित क्षेत्र अच्छा रहता है।
इन किस्मों की करें खेती
कुर्गहनी, मधुबिंदु, पूसाड्वार्फ, पूसा डिलिसयस, पूसानन्हा, सीओ-7 पपीते की प्रमुख किस्में हैं। ताइवान पपीता किस्म ताइवान 786 जल्दी पकने वाली मीठे व स्वादिष्ट गूदेदार किस्म है। पूसा डिलियस किस्म पर फल पौधे लगाने के 250 दिन बाद आने लगते हैं। पपीते के पौधे बीज द्वारा तैयार किए जाते हैं। एक एकड़ में पौधारोपण के लिए 125 ग्राम बीज पर्याप्त रहता है। अप्रैल में लगाई गई पपीते की नर्सरी जून या जुलाई में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।
पौधारोपण का सही समय
खेत में दी मीटर की दूरी पर 50*50*50 सेंटीमीटर नाप के गड्ढ़े खोद कर उनमें गोबर की खाद व मिट्टी बराबर मात्रा मे मिलाकर भरें तथा सिचाई करें, ताकि मिट्टी बैठ जाए। इस प्रकार एक एकड़ में 1054 गड्ढे बनेंगे जुलाई-अगस्त में एक गढ्ढे में दो पौधे लगाएं, क्योंकि पपीते में 50 फीसद तक नर पौधे निकल सकते हैं। 20 किलो गोबर की खाद प्रति पौधा डालें। उर्वरक तने से एक फुट की दूरी पर चारों तरफ डालना चाहिए। फरवरी व अगस्त में 500 ग्राम मिश्रित उर्वरक अमोनियम सल्फेट, सिंगल सुपर फास्फेट 2:4:1 के अनुपात में प्रति पौधा डाल दें। गर्मियों में हर सप्ताह तथा सर्दियों में 15-20 दिनों बाद सिंचाई करते रहें। सिंचाई करते समय ध्यान दें कि पानी पौधों के तने के पास खड़ा न होने दें। पपीते में फूल आने पर ही नर व मादा पौधों की पहचान होती है, तब उनमें से सारे खेत मे 10 फीसद नर पौधे रख कर बाकी नर पौधों को उखाड़ देना चाहिए।
रोग से बचाव के लिए करें ये उपाय
पपीते में तना गलन रोग का प्रकोप ज्यादा होता है। इस रोग में जड़ व तना नीचे से गलने से पौधे सूख जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए पौधों के पास पानी न खड़ा होने दें। लिपकर्ल या मोजेक रोग भी लगता है इसमें पत्तियां छोटी, झुर्रीदार तथा फल छोटे लगते हैं। रोगी पौधों को निकाल कर नष्ट कर दें तथा इस रोग को फैलाने वाली सफेद मक्खी कीट रोक थाम के लिए 250 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ईसी को 250 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ पपीता फसल पर छिड़काव करना चाहिए। पपीते में हल्का पीला रंग आने पर या खुरचने पर पानी जैसा पदार्थ पपीता पकने का प्रारंभिक लक्षण हैं। ऐसी अवस्था आने पर फलों को तोड़ लें व कागज में लपेटकर टोकरी व लकड़ी के बक्से में पैक कर बिक्री के लिए मंडी भेजना चाहिए। पपीते के एक पौधे से 30-40 किलोग्राम फल तथा एक एकड़ में 200 से 300 क्विंटल पैदावार मिल जाती है। यानी किसान पपीते की खेती से लाखों रुपये कमा सकते हैं।
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